रविंद्रनाथ टैगोर जी ने कहा था- दुनिया में, हर बच्चे का आना, इस बात का संदेश है कि ईश्वर, अभी मनुष्य से, निराश नहीं हुआ है। बच्चों को हम, भगवान का रूप मानते हैं। लेकिन, इंटरनेशनल लेबर ऑग्रेनाइजेशन के अनुसार, आज दुनियाभर में, 16 करोड़ से ज्यादा बच्चे, बाल मजदूरी में लगे हुए हैं। कुछ तो, सिर्फ 5 साल के हैं। इस डाटा की मानें, तो दुनिया भर में, हर 10 में से 1 बच्चा, चाइल्ड लेबर में लगा है। इसे रोकने के लिए, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने, पहल की थी। साल 2002 में। और तब से हम, हर साल 12 जून को, बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस मनाते हैं। भारत की बात करें, तो इस मुद्दे को लेकर, साल 1979 में पहली बार, एक समिति बनाई गई थी। नाम था- गुरुपदस्वामी समिति। इसकी सिफारिशों के आधार पर, बाल श्रम निषेध और विनियमन अधिनियम 1986 लाया गया।
साल 2016 में, इसमें संशोधन हुआ कि 14 से 18 साल, तक के किशोरों से, किसी भी प्रकार की, मजदूरी नहीं करवाई जाएगी। 1987 में, इस पर, एक नेशनल पॉलिसी भी आई। वहीं, हमारे संविधान का अनुच्छेद 24 ये कहता है कि - कारखानों आदि में, बच्चों को काम पर नहीं लगाया जा सकता। लेकिन इस तरह के कई, एक्ट और नियमों के बावजूद, आज भी, करोड़ों बच्चे बाल मजदूरी में लगे हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में, इसमें टॉप पर हैं। तकरीबन 55 से 60 परसेंट, बाल मजदूर यहीं हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह- गरीबी, बेरोजगारी, हमारा एजुकेशन सिस्टम, जनसंख्या, अनाथ सुरक्षा की असफलता, सामाजिक, आर्थिक हालात और अवेयरनेस की कमी है। कोई भी बच्चा, अपनी खुशी से काम नहीं कर रहा, वो उसकी मजबूरी है। माना कि अगर लॉ को फोलो करते
हुए, नौकरी देने वाले लोग, बच्चों को काम पर नहीं रखेंगे, तो उन बच्चों का क्या होगा, जो अगर एक दिन काम न करें, तो अगले दिन भूखे रहना पड़ता है। इन नियम कानूनों की वजह से भी, भ्रष्टाचार बढ़ा है। लोग अवैध तरीके से बच्चों को काम पर रखते हैं। बाल मजदूरी की ये समस्या, सिर्फ एक्ट बनाने से नहीं, बल्कि परिवारों को फाइनांशियली मजबूत बनाने से दूर होगी। एक अंधेरी रात में, आसमान में जितने सितारे दिखते हैं ना, बच्चों की इच्छाएं और सपने भी, उन्हीं की तरह हैं- अनगिनत, शानदार और अनंत संभावनाओं से भरे हुए। ये हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम हर परेशानी को दूर कर, इनके सपनों को नरिश करें, और उन्हें एक ऐसा भविष्य दें, जहां वो सबसे तेज चमक सकें।"